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संक्षिप्त टिप्पणी (Short Notes)
1. देय मांगें (Demand Payable)
(Account Code Vol-I Chapter-2 Para 220)
देय मांगें एक उचंत लेखाशीर्ष है जिसे मुख्य शीर्ष 346/347,
भारतीय रेलवे कार्य व्यय के अंतर्गत अनुरक्षित किया जाता है | एक विशिष्ट महीने का
कार्य व्यय अथवा राजस्व जिम्मेदारियां जिसका वास्तविक भुगतान किया गया है अथवा
नहीं, उसी महीने के हिसाब में वाणिज्यिक लेखा के अनुसार
लेखांकित करने के उद्देश्य से इस लेखा शीर्ष को अनुरक्षित किया जाता है| मुख्यतः यह सरकारी लेखा को वाणिज्यिक लेखा से जोड़ने
हेतु माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है |
इस लेखाशीर्ष का शेष हमेशा जमा शेष (Credit Balance) होता है जो बताता है कि राजस्व व्यय का भुगतान करना
बाकी है | हरेक महीने के लिए इस शीर्ष का अलग-अलग लेखा तैयार
किया जाता है| ऐसे लेखों के लिए हमेशा शुद्ध शेषों के आधार पर मांग
क्रमांक 12 के अंतर्गत बजट अनुमान तैयार किये जाते हैं |
इस लेखाशीर्ष के अंतर्गत निम्नलिखित राजस्व व्यय देय
मांगों को लेखांकित किये बिना सीधे अंतिम लेखाशीर्ष को प्रभारित किये जातें हैं-
·
भविष्यनिधि हतु विशेष उपदान ओर
मृत्यु उपदान |
·
सेवानिवृति से सम्बंधित निपटारे की
राशि |
·
श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के
अंतर्गत देय राशि |
·
फुटकर भंडार आपूर्ति के प्रभार |
·
पंजीकरण एवं डाकखर्च |
·
क्षतिग्रस्त व खोये माल से
सम्बंधित देय प्रतिपूर्ति की राशि |
लेखांकन
: मार्च माह के वेतन को अप्रैल माह में देय :
मार्च महीने में JV
के द्वारा : Revenue Final Head Dr
Demand Payable Cr
अप्रैल महीने में CO
के द्वारा: Demand Payable Dr
Cheques & Bills Cr
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2. अर्थोपाय ओर संसाधन (Ways & Means)
अर्थोपाय ओर संसाधन का उद्देश यह व्यवस्था करना होता
है की किसी वर्ष के दौरान सरकार के पास हर समय काफी मात्रा में रोकड़ शेष होना
चाहिए जिससे कि सरकार की सभी प्रकार की जरूरतें, आवयश्कताएं पूरी हो सके |
इसका सम्बन्ध मात्र सरकारी राजस्व व्यय से ही नहीं है
अपितु उन सभी प्राप्तियों एवं संवितरण (Receipts & Payments) से है जो सरकारी खजानों में आती है ओर भुगतान स्वरुप खजाने से निकली जाती है
| अर्थोपाय
ओर संसाधन सरकारी के रोकड़ शेषों को सीधे प्रभावित करती है |
अर्थोपाय ओर संसाधन व्यवस्था सीधे भारत के राष्ट्रपति
व वित्त मंत्रालय के नियंत्रण में होती है |
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3. साधन (Resources)
सरकार के रोकड़ शेष को विभिन्न खजानों या
भुगतान केन्द्रों में बाटने की प्रक्रिया साधन कहलाती है |
इस व्यवस्था क द्वारा सभी सरकारी खजाना या
भुगतान केंद्र स्थानीय मांगों को पूरा करने हेतु अपने पास प्रयाप्त निधि संचित कर
पता है | कुछ केंद्र ऐसे होते हैं जहाँ भुगतान कम एवं
प्राप्तियां ज्यादा होती हैं जबकि कुछ केन्द्रों पर भुगतान ज्यादा ओर प्राप्तियां
कम होती हैं | ऐसी अवस्था में जिन केन्द्रों पर
धन बचता है वो घाटे वाले खजाना केन्द्रों को कुछ धन दे देते हैं |
इस व्यवस्था को प्रशासन, सरकार से परामर्श
करके, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के द्वारा प्रचालित किया जाता है |
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4. लेखा पर मतदान (Vote on-Account)
भारत के संविधान में वित्तीय वर्ष के अप्रैल माह से
विनियोग विधेयक के पास होने तक संसद के द्वारा सरकार को एक वित्तीय वर्ष के लिए,
जनता की सेवा जारी रखने के लिए, अग्रिम फंड के मांग की व्यवस्था की गई है , यह
व्यवस्था लेखा पर मतदान (वोट ऑन अकाउंट) कही जाती है|
ऐसी अवस्था सामान्यतः तब उत्पन्न होती है जब सामान्य
चुनाव के बाद, नई संसद के बनने में कुछ समय लगता है ओर नई संसद के द्वारा पुरे
वर्ष के लिए राजस्व मांग को पारित नहीं किया जा सकता है |
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5. अभिरक्षा भंडार (Custody Stores)
(Indian Railway
Stores Code Vol II Chapter XV Para 1552)
यांत्रिक विभाग के लिए स्वीकृत
किये गए राजस्व/पूंजी प्रकार के कार्यों हेतु भंडार के कुछ प्रमुख मद जिन्हें
रोलिंग स्टॉक के निर्माण के लिए ख़रीदा जाता है,
उनके मूल्य को सीधे सम्बंधित कार्य को नामे (Debit)
किया जाता है | इन मदों को, कारखाने में रखरखाव की अपर्याप्त सुविधा होने के कारण
एवं जरुरत के समय उपलब्ध कराने हेतु , कारखाने में रखने की बजाय भंडार विभाग के
अलग अलग वार्डों में सुरक्षित रखा जाता है |
भण्डारण की इस व्यवस्था को अभिरक्षा भंडार कहा जाता है | ऐसे भंडार का भंडार विभाग
द्वारा उचित सांख्यिक रिकॉर्ड रखा जाता है |
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6. विनियोजन विधेयक (Appropriation Bill)
संसद द्वारा अनुदान के लिए मांग के पारित होने के
बाद, भारत की संचित निधि से धन निकालने के लिए संसद में जो विधेयक प्रस्तुत किया
जाता है उसे विनियोग विधेयक कहा जाता है |
इस विधेयक में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की
पूर्ति के लिए अपेक्षित धन तथा सरकार के खर्च हेतु अनुदान के लिए मांग शामिल किये
जाते हैं | संविधान की धारा 114(3) के अनुसार
विनियोग विधेयक का संसद में पारित हुए बिना भारत की संचित निधि से धन नहीं
निकाला जा सकता है | इस बिल के संसद में पारित होने ओर माननीय राष्ट्रपति के सहमती
के बाद रेलवे द्वारा भारत की समेकित निधि
से धन को खर्च किया जा सकता है|
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7. प्रोफोर्मा ऊपरी लागत (Proforma On-Cost)
(IRRS Code :
Chapter 7 Para-757 B)
वैसे अप्रत्यक्ष प्रभार जिन्हें
रेल कारखानों में किये गए कार्य की लागत में तो शामिल नहीं किये जाते परन्तु वाणिज्यिक लागत नियमों के अंतर्गत सामान्यतः उत्पादन लागत में शामिल किये जातें हैं, प्रोफोर्मा ऊपरी लागत कहलाते हैं | रेलवे वर्गीकरण
नियमों के अंतर्गत इन अप्रत्यक्ष व्यय/लागत को संचालन
व्यय के अंतिम लेखाशीर्ष को सीधे प्रभारित किये जातें
हैं | जिनके अंतर्गत निम्लिखित मदें शामिल की जाती है :
- सभी सेवा विभाग (प्रशासन, लेखा, भंडार,
सुरक्षा,चिकित्सा ) हेतु किये गए व्यय का भाग(मांग क्रमांक:03)|
- पुरे कारखाने में संयंत्र व उपस्कर मरम्मत पर व्यय (मांग क्रमांक:07) |
- कर्मकार प्रतिकार अधिनियम के अंतर्गत किये जाने वाले भुगतान (मांग क्रमांक : 12)
|
- भविष्य निधि में शासकीय अंशदान एवं सेवा निवृति उपरांत दिए जाने लाभ पर किये
जाने वाले व्यय (मांग क्रमांक : 13) |
- संयंत्र ओर इमारतों का मूल्यह्रास निधि में योगदान (मांग क्रमांक : 16) |
- कारखाना कर्मचारियों को शैक्षणिक सुविधाओं पर किये जाने वाले व्यय |
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8. कारखाना सामान्य रजिस्टर (Workshop General Register)
(IRRS Code :
Chapter 7 Para-755)
श्रम एवं भंडार उप-लेजर के द्वारा, किसी एक माह में श्रम, भंडार एवं प्रत्यक्ष
श्रमिक पर ऊपरी लागत के सम्बन्ध में, प्रत्येक कार्य आदेश पर प्रभारित प्रभार शॉप
के अनुसार जिस रजिस्टर में अनुरक्षित रखा जाता है उसे कारखाना सामान्य रजिस्टर कहा
जाता है |
यह एक संगणित विवरण होता है जो टाइम शीट, मासिक भंडार सारांश ओर प्रत्येक
कार्य आदेश पर प्रभारित प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष खर्च को संकलित कर के बनाया जाता है | इस रजिस्टर के द्वारा शॉप के
अनुसार विभिन्न कार्य आदेश पर होने वाले कुल खर्च की जानकारी प्राप्त होती है | इस
रजिस्टर की सहायता से उत्पादन विवरण पार्ट-I
ओर पार्ट-II तैयार किया जाता है | इसके
अतिरिक्त इतर रेलवे ओर स्थानीय रेलवे के विभिन्न मंडलों के लिए किये गए खर्च,
कार्य आदेश के अनुसार, प्राप्त किये जाते हैं |
वस्तुतः कारखाना सामान्य रजिस्टर कारखाने में सभी प्रकार कार्य आदेशों पर किये
जाने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष खर्च की विस्तृत विवरणी होती है |
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9. लेखा विभाग का तुलन पत्र (Account Office Balance Sheet)
(Accounts Code
Vol-II Chapter-29 para-2922)
कुछ सरकारी विभागों एवं कुछ नामित कंपनियों द्वारा रेलवे को नगद भाडा न देकर
मिलिट्री वारंट, क्रेडिट नोट आदि जैसे वाउचरों को
दिया जाता हैं| इन वाउचरों को स्टेशन द्वारा यातायात लेखा कार्यालय
भेजा जाता है जहाँ इन वाउचरों के मूल्य की वसूली हेतु सम्बंधित विभाग/कंपनी के नाम
से वाहन बिल (Carriage/Transit Bill) तैयार किये जाते हैं|इसके अलावे कुछ विशेष यातायात के
मामले में (टूरिस्ट कूपन, विज्ञापन आदि) यातायात कार्यालय द्वारा राशि को सीधे
वसूली की जाती है| इस दोनों प्रकार के वसूली को रेलवे खाते में जमा करने की
जिम्मेदारी लेखा कार्यालय की होती है|इस प्रकार सीधे रूप से प्राप्त आय
एवं वाउचरों से प्राप्त आय पर निगरानी रखने के लिए यातायात लेखा कार्यालय द्वारा
जो तुलन पत्र तैयार किया जाता है उसे लेखा विभाग का तुलन पत्र कहा जाता है|
यह कोचिंग ओर माल यातायात के लिए अलग अलग बनाया जाता है| इसके डेबिट पक्ष में
जिस राशि की वसूली की जानी है उसे लिखा जाता है जबकि क्रेडिट पक्ष वसूली की गई
राशि को लिखा जाता है|
लेखा विभाग के तुलन पत्र हमेशा डेबिट शेष बताता है,
जो यह बताता है की कितने वाउचरों बकाया पड़े हैं जिनके लिए वाहन बिल बनाना बाकि है
|
प्रोफोर्मा
:
|
Dr
|
Cr
|
|
- Opening Balance
-Carriage Bill (Current+Previous Month)
-बकाया वाउचर (Current+Previous Month) - Miscellaneous Bill
- RMS, HOR, MLA कूपन
- उपनगरीय टिकिट
- Deposit Works
- कमीशन शुल्क
|
- वसूल किये गए रोकड़
- Reserve Bank Clearance memo
- Party का चेक
- Inter Rly/Dept लेन-देन
- Book Transfer (Traffic & General Bk)
- Balance Sheet Transfer
- Closing Balance
|
लेखा विभाग का closing balance निम्न बातें प्रदर्शित करता है :-
- कितने वाउचरों का बिल नहीं बना है |
- कितने वाउचरों बिल की वसूली नहीं हुई है |
- कितने कमीशन शुल्क वसूली करने हैं|
इस
प्रकार लेखा विभाग का तुलन पत्र भारतीय रेल को होने वाले आय के बारे में सुचना प्रदर्शित
करता है|
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